समाज सेवा का क्या उद्देश्य होना चाहिए : Kosare Maharaj
समाज सेवा का उद्देश्य :
व्यक्तियों, समूहों और समुदायों का अधिकतम हितसाधन होता है। अत: सामाजिक कार्यकर्ता सेवार्थी को उसकी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम बनाने के साथ उसके पर्यावरण में अपेक्षित सुधार लाने का प्रयास करता है और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के निमित्त सेवार्थी की क्षमता तथा पर्यावरण की रचनात्मक शक्तियों का प्रयोग करता है। समाज सेवा सेवार्थी तथा उसके पर्यावरण के हितों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करती है। समाज सेवा का अर्थ एवं स्वरूप जीवन को सार्थकता स्वयं से हटकर दूसरों के लिए सोचना भी है। यह संदेश यदि फलों से लदे वृक्ष, फूलो से लटकती डालियाँ दे सकती है तो फिर मनुष्य क्यों नहीं। समाज सेवा वैयक्तिक आधार पर, समूह अथवा समुदाय में व्यक्तियों की सहायता करने की एक प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति अपनी सहायता स्वयं कर सके। इसके माध्यम से सेवार्थी वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में उत्पन्न अपनी कतिपय समस्याओं को स्वयं सुलझाने में सक्षम होता है।
अत: हम समाज सेवा को एक समर्थकारी प्रक्रिया कह सकते हैं। यह अन्य सभी व्यवसायों से सर्वथा भिन्न होती है; क्योंकि समाज सेवा उन सभी सामाजिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों का निरूपण कर उसके परिप्रेक्ष्य में क्रियान्वित होती है, जो व्यक्ति एवं उसके पर्यावरण-परिवार, समुदाय तथा समाज को प्रभावित करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता पर्यावरण की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक शक्तियों के बाद व्यक्तिगत जैविकीय, भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक तत्त्वों की गतिशील अन्तःक्रिया को दृष्टिगत कर ही सेवार्थी को सेवा प्रदान करता है। वह सेवार्थी के जीवन के प्रत्येक पहलू तथा उसके पर्यावरण में क्रियाशील, प्रत्येक सामाजिक स्थिति से अवगत रहता है, क्योकि सेवा प्रदान करने की योजना बनाते समय वह इनकी उपेक्षा नहीं कर सकता।
समाज सेवा का महत्त्व :
मानव एक सामाजिक प्राणी है। ‘प्राणी’ इस जगत का सर्वाधिक विकसित जीव है और इस समाज के बिना उसका रहना कठिन ही नहीं, असम्भव है। माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदारों आदि लोगों को मिलाकर ही इस समाज की रचना होती है। समाज के बिना मानव का पूर्ण रूप से विकास होना सम्भव ही नहीं है, इसलिए मानव को हर कदम-कदम पर समाज को आवश्यकता होती है तथा समाज के लोगों के बीच ही हम अपने जीवन का अधिकतर समय व्यतीत करते हैं। हम जिस समाज में रहते है, उन्हीं के बीच हम खाते हैं, पीते है, जीते हैं व रहते हैं। हमें निस्वार्थ भाव से समाज के लोगों की सेवा, मदद, हित आदि करने चाहिए, इससे पूरे राष्ट्र की व्यवस्था में सुधार किया जा सकता है। समाज सेवा के द्वारा सरकार और जनता दोनों की आर्थिक सहायता की जा सकती है। अपने निकट सम्बन्धियों एवं पड़ोसियों की सेवा करना भी समाज सेवा ही है। आज हमारे देश का भविष्य युवाओं पर निर्भर है, अत: समाज की सेवा करना हर युवा का कर्त्तव्य है। समाज के सेवकों का यह कर्त्तव्य है कि वे सच्चे दिल से समाज की सेवा करें। सच्चे हृदय से की गयी समाज सेवा ही इस देश एवं इस पूरे संसार व समाज का कल्याण कर सकती है।
जिस तरह हर व्यक्ति निस्वार्थ भाव से अपने परिवार की तन-मन, धन से समर्पित होकर पूर्ण रूप जिम्मेदारी/दायित्व उठाते सेवा करता है, उसी प्रकार हर व्यक्ति की अपने समाज के प्रति भी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने परिवार की तरह ही अपने समाज के लिए सोच विचार करे तथा समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करे और समाज सेवा को एक जिम्मेदारी के साथ निभाए। हमारा परिवार भी समाज का एक हिस्सा होता है, उसी समाज के कारण हमारी और हमारे परिवार की पहचान होती है। इसलिए जितनी जिम्मेदारी हमारी हमारे परिवार के लिए होती है, उतनी ही जिम्मेदारियाँ हमारी हमारे समाज के प्रति भी बनती है और इन जिम्मेदारियों का परिवहन बिना किसी निस्वार्थ भाव के करना समाज के हर नागरिक का कर्तव्य है।
मानव होने के नाते जब तक हम एक-दूसरे का दुःख-दर्द में साथ नहीं निभाएँगे, तब तक इस जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी। वैसे तो हमारा परिवार भी समाज की ही एक इकाई है, किन्तु इतने तक ही सीमित रहने से सामाजिकता का उद्देश्य पूरा नहीं होता। हमारे जीवन का अर्थ तभी पूरा होगा जब हम समाज को ही परिवार माने। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को हम जितना अधिक-से-अधिक विस्तार देगे, उतनी ही समाज में सुख-शांति और समृद्धि फैलेगी। मानव होने के नाते एक-दूसरे के काम आना भी हमारा प्रथम कर्त्तव्य है। हमें अपने सुख के साथ-साथ दूसरे के सुख का भी ध्यान रखना चाहिए। अगर हम सहनशीलता, संयम, धैर्य, सहानुभूति और प्रेम को आत्मसात करना चाहे तो इसके लिए हमे संकीर्ण मनोवृत्तियों को छोड़ना होगा। धन, सम्पत्ति और वैभव का सदुपयोग तभी है, जब हमारे साथ-साथ दूसरे भी इसका लाभ उठा सके। आत्मोन्नति के लिए ईश्वर प्रदत्त जो गुण सदैव रहता है, वह है-सेवाभाव, समाज सेवा। जब तक सेवाभाव को जीवन में पर्याप्त स्थान नहीं दिया जाएगा, तब तक आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता। कहा भी गया है कि भलाई करने से भलाई मिलती है और बुराई करने से बुराई मिलती( कोसारे महाराज )
कोसारे महाराज :- संस्थापक व राष्ट्रीय अध्य्क्ष
मानव हित कल्याण सेवा संस्था नागपुर
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